DHM 2022: Caste, Labor and Migration — A Dedication to Gail Omvedt

Dalit History Month
4 min readApr 1, 2022

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Read the article in Hindi here.

Gail Omvedt, Portrait, Art by Fathima Ismail

“… [the] caste system is not merely a division of labour. It is also a division of labourers.. [In] no civilised society is division of labour accompanied by this unnatural division of labourers into watertight compartments.”- Dr B.R. Ambedkar, Annihilation of Caste (1936)

Dear friends,

Jai Bhim! We are about to embark on another wonderful Dalit History season this year and we welcome everyone and ask you to celebrate with us !

This year, the theme we settled on is “Caste, Labor and Migration”. We chose this theme because it is continuously important to cultivate an understanding of how, in caste societies, labor is defined by caste and the two remain inextricable.

It is also now time to develop a deeper acceptance and appreciation for the fact that Dalit-Bahujan Labor, whether enslaved, indentured, forced, exploited or voluntary, has been (and continues to be) a force of social, cultural and economic development, not only across across South Asia, but throughout the world, including the South-East Asia, Fiji, the Caribbean, Myanmar, parts of East and South Africa, Mauritius, Europe, the Middle East, and North America.

Even so, traditionally, South Asian worker’s movements have failed to recognize caste before the category of class. They failed to see that you cannot unite workers when the workers themselves are divided by caste. In operating with such expansive theoretical blind spots, in formations often led only by oppressor-castes, much of the potential for building power has been squandered.

In such a context, there have been few social figures who have understood the need for addressing of caste before class and, critically, viewing the categories as interlinked. These people have included Dr.B.R. Ambedkar, Jyotiba Phule, the Dalit Panthers and others. Among them, scholar and activist, Gail Omvedt, who we lost on 25th August 2021, has been more contemporary. Her understanding and alignment with the Buddha, the Phules, and Ambedkar was foundational to her work and life. Her legacy has been reams of work in journals and books but her legacy has also always been on the ground, with caste-oppressed workers. In acting in these ways, she embodied and lived her values.

And as we enter into another year, we feel her absence deeply. To commemorate her brilliant, tenacious, and life-long work, we dedicate Dalit History Month 2022 to her. May she Rest in Power.

#DalitHistory #Dalithistorymonth #LaborandMigration #caste

दलित इतिहास माह: जाति, श्रम और प्रवास गेल ओमवेट को समर्पित

अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद: गौतम

गेल ओमवेट, छायाचित्र, फातिमा इस्माइल की कलाकृति

“…जाति व्यवस्था महज श्रम का विभाजन नहीं है बल्कि श्रमिकों का विभाजन भी है। किसी भी दूसरे सभ्य समाज में श्रम के विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों को इस तरह से अस्वाभाविक रूप से बंद खांचों में नहीं बांटा जाता है।” — डॉ. बी. आर. अंबेडकर, जाति का विनाश (1936)

प्यारे साथियों,

जय भीम! हम इस वर्ष दलित इतिहास के एक और रोमांचक सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं, और आप सभी का स्वागत करते हुए हम उम्मीद करते हैं कि आप भी इस जश्न में हमारे साथ शामिल होंगे!

इस साल की दलित इतिहास यात्रा “जाति, श्रम और प्रवास” के विषय पर केंद्रित होगी। हमने इस विषय का चुनाव इसलिए किया क्योंकि हमें लगता है कि जाति-आधारित समाजों में जाति किस तरह श्रम को परिभाषित करती है, और यह दोनों आपस में किस तरह गुत्थम-गुत्था रहते हैं, इसकी लगातार समझ विकसित करते रहना बहुत महत्वपूर्ण है।

कभी गुलामगिरी तो कभी गिरमिटिया प्रणाली के ज़रिये, कभी जबरन या शोषण से तो कभी स्वेच्छा से हासिल किया गया दलित-बहुजन श्रम और परिश्रम, न सिर्फ दक्षिण एशिया में बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया, फिजी, कैरिबियन, म्यांमार, पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के कुछ हिस्सों, मॉरीशस, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका सहित पूरे विश्व में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास का आधार रहा है (और अब भी बना हुआ है) और अब वक़्त आ गया है कि इस तथ्य के प्रति ज़्यादा गहरी समझ और मान्यता विकसित की जाए।

इसके बावजूद, परंपरागत रूप से, दक्षिण एशियाई मज़दूर आंदोलनों ने वर्ग की श्रेणी के सामने जाति की लगातार अनदेखी की। वे यह देखने में विफल रहे कि जाति के आधार पर बंटे हुए मज़दूरों को सिर्फ वर्ग के आधार पर एकजुट नहीं किया जा सकता है। उत्पीड़क-जातियों से आने वाले व्यक्तियों के नेतृत्व में किये गए प्रयासों में इन व्यापक वैचारिक कमियों के कारण ही मज़दूर शक्ति खड़ी करने की संभावनाओं को गंवा दिया गया।

ऐसे संदर्भ में, कुछ सामाजिक हस्तियां उभरी जिन्होंने वर्ग से पहले जाति को संबोधित करने की आवश्यकता को समझा और, महत्वपूर्ण रूप से, इन दोनों श्रेणियों के आपसी संबंध को टटोला। इन विचारकों की सूची में डॉ. बी.आर. अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, दलित पैंथर्स इत्यादि को शामिल किया जा सकता है। विद्वानों की इस श्रृंखला में एक समकालीन नाम, अध्ययनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता गेल ओमवेट का भी है जिनका 25 अगस्त 2021 को निधन हुआ था। बुद्ध, ज्योतिबा व सावित्रीबाई फुले और अंबेडकर के साथ उनका जुड़ाव और समझ ही उनके काम और जीवन की आधारशिला रही। उनकी विरासत सिर्फ उनकी किताबों और पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके अनगिनत लेखों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जाति-उत्पीड़ित मज़दूरों के साथ ज़मीनी-स्तर पर उनका काम भी इस विरासत का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने अपने मूल्यों को अपने कार्य और जीवन शैली में आत्मसात किया था।

और इस नए साल की शुरुआत करते हुए हमें उनकी गहरी कमी महसूस हो रही है। उनके शानदार और प्रभावशाली जीवन-पर्यन्त कार्य को याद करते हुए हम यह दलित इतिहास माह 2022 गेल ओमवेट को समर्पित करते हैं। जय भीम, गेल!

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Written by Dalit History Month

Redefining the History of the Subcontinent through a Dalit lens. Participatory Community History Project

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