दलित इतिहास माह 2019-भंवरी देवी के संघर्ष को सलाम करते हुए

Dalit History Month
5 min readApr 10, 2019

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This post was written for Dalit History Month by Ashwini KP. Ashwini is a researcher and works on issues related to human rights, Dalit women, caste, and social exclusion. You can reach her at ashwini.kp16@gmail.com. Translation to this post into Hindi was contributed by researcher and activist, Sunita Vishwas.

यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में, बहादुर बने रहे- भंवरी देवी

आज #DalitHistoryMonth एवं #MeToo के दौर में, हम सराहना करते हैं भंवरी देवी जी की जो लम्बे समय से लैंगिक न्याय एवं समानता के लिए संघर्ष कर रही हैं। हम उनके योगदान एवं संघर्ष का सम्मान करते हैं जिन्होंने लगातार महिलाओं के अधिकारों एवं आत्म-सम्मान और क़ानूनी विधि निर्माण की नींव रखी है। इस क़ानून के अंतर्गत कार्यस्थल में होने वाले यौन उत्पीड़न का अपराधीकरण किया गया ।

भंवरी देवी बहुजन समुदाय से है, जिन्होंने ग्रामीण राजस्थान में सामन्तवादी, जातिवादी एवं पितृसत्ता की संरचना के ख़िलाफ़ लड़ने की हिम्मत की। उन्होंने अपना कार्य समाज सेविका के रूप में सरकार द्वारा चलाये गए महिला विकास परियोजना से शुरू किया था। वर्ष 1992 में, वह बाल विवाह के खिलाफ विशिष्ट अभियानों में शामिल हुयी।

वह महिलाओं को परिवार नियोजन, बालिका शिक्षा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा और बाल विवाह के विषय में सलाह देती थी। पहले से ही, उन्हे और उनके परिवार को उनके कार्य के परिणामस्वरूप गांव में उत्पीड़क जाति के पुरुषों द्वारा लगातार धमकियों का सामना करना पड़ता था और भय में रहना पड़ता था ।

एक बार उन्होंने एक नौ महीने की बच्ची की शादी को रोकने का प्रयास किया जो की एक उत्पीड़क परिवार से थी . इससे गाँव के उत्पीड़क जाति के पुरुष बहुत क्रोधित हो गए। इसका अंजाम जानते हुए भी वह इसकी अवहेलना करती रही और जो सही था उसके के लिए निडर खड़ी रही। उसी वर्ष बदला लेने के लिए उत्पीड़क जाति के पुरुषों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया और उनके पति को भी पीटा जब वह खेत में काम कर रहे थे।

इसके बाद उनका आगे का लक्ष्य सिर्फ न्याय पाना था, जिसके लिए उन्हें पुलिस स्टेशन में, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में और न्यायपालिका में कई अन्य बाधाओं का सामना करना पड़ा।

भंवरी देवी का मामला जाति आधारित यौन हिंसा के कई मामलों में से एक था, जिसने देश का ध्यान आकर्षित किया। उस समय कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को संबोधित करने वाला कोई मजबूत कानून नहीं था । भंवरी देवी को अपने मामले पर बहस करने के लिए भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें और उनके परिवार को समुदाय के साथ-साथ पुलिस और न्यायपालिका से भी बहिष्कार और असंवेदनशीलता का अनुभव हुआ। अपने बलात्कारियों के खिलाफ लड़ने के लिए अथक संघर्ष के बावजूद, 1995 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

बरी होने के कुछ भयावह कारण थे कि “उच्च” जाति के पुरुष शुद्धता के कारणों से “निचली” जाति की महिला का बलात्कार नहीं कर सकते, विभिन्न जातियों के पुरुष सामूहिक बलात्कार में भाग नहीं ले सकते और 60–70 वर्ष की आयु के पुरुष बलात्कार नहीं कर सकते।

आरोपियों के बरी होने के बाद, नारीवादी समूहों और अन्य प्रगतिशील नागरिक समाज समूहों ने विशाखा घोषणापत्र के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के लिए कामकाजी जगह को सुरक्षित बनाना था। अंततः इन विशाका दिशानिर्देशों का एक पूर्ण प्रवाह विधानों में अनुवाद किया गया, जिसे कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के रूप में जाना जाता है। भंवरी देवी के प्रयासों से उपजा यह कानून का हिस्सा, अब पूरे भारत की महिलाओं को कार्यस्थल को यौन उत्पीड़न मुक्त बनाने की लड़ने में मदद करता है।

दुर्भाग्य से, भंवरी देवी स्वयं को न्याय दिलाने की लड़ाई में विफल रही, घटना के 26 साल बाद भी ट्रायल कोर्ट में उनकी अपील लंबित है। लेकिन वह चुप नहीं बैठी। पिछले 26 सालों से उन्होंने प्रबल रूप से महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठाई हैं। उनके साहस और दृढ़ता के लिए, उन्हें नीरजा भनोट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने 1995 बीजिंग में, संयुक्त राष्ट्र के चौथे विश्व महिला सम्मेलन में भी प्रतिनिधित्व किया। भंवरी देवी के संघर्ष ने भारत में जाति आधारित यौन हिंसा की गंभीरता को उजागर किया है । लिंग, जाति और वर्ग के प्रतिच्छेदन के समावेश के साथ, उन्होंने भारत में महिला अधिकारों के प्रवचन को पूरी तरह बदल दिया।

वह स्वयं, अभी भी अपने न्याय के लिए लड़ रही है।

आज हम भंवरी देवी जी को उनके साहस, दृढ़ संकल्प और शक्ति के लिए सलाम करते हैं। महिलाओं के अधिकारों में उनका बहुत बड़ा योगदान लाखों लोगों को प्रेरणा देता है हम उनके संघर्ष में उनके साथ खड़े हैं।

यह पोस्ट अश्विनी के.पी. द्वारा Dalit History Month के लिए लिखा गया हैं ।

यह लेख अश्विनी के.पी. द्वारा दलित इतिहास माह के लिए लिखा गया है। अश्विनी एक शोधकर्ता हैं और वह मानवाधिकार, दलित महिलाओं, जाति और सामाजिक बहिष्कार के मुद्दों पर काम करती हैं। आप उन्हें ashwini.kp16@gmail.com पर लिख सकते हैं। इस लेख का हिंदी में अनुवाद सुनीता विश्वास द्वारा किया गया है, वह एक शोधकर्ता और कार्यकर्त्ता है।

This post was written for Dalit History Month by Ashwini KP. Ashwini is a researcher and works on issues related to human rights, Dalit women, caste and social exclusion. You can reach her at ashwini.kp16@gmail.com. Translation to this post into Hindi was contributed by researcher and activist, Sunita Vishwas.

Sources

Shruti Kedia, Meet the woman whose lifelong struggle laid the foundation for laws against sexual harassment in the workplace, 8th Jan 2018,https://yourstory.com/2018/01/bhanwari-devi-vishaka-guidelines.

Banwari Devi: A hero we failed,https://feminisminindia.com/2017/03/03/bhanwari-devi-essay/

M. Alston, Women, Political Struggles and Gender Equality in South Asia, Springer Publication.

Geetanjali Gangoli, Indian Feminisms: Law, Patriarchies and Violence in India, 2007, Ashgate Publishing, New York.

Savitri Goonesekere, Violence, Law and Women’s Rights in South Asia, 2004, Sage Publications, New Delhi.

Archana Nathan, Dalit woman’s rape in ’92 led to India’s first sexual harassment law — but justice still eludes her,https://scroll.in/article/899044/dalit-womans-rape-in-92-led-to-indias-first-sexual-harassment-law-but-justice-still-eludes-her

Geeta Pandey, Bhanwari Devi: The rape that led to India’s sexual harassment law, https://www.bbc.com/news/world-asia-india-39265653.

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Written by Dalit History Month

Redefining the History of the Subcontinent through a Dalit lens. Participatory Community History Project

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